Sunday, 4 June 2017

पर्यावरण बचेगा और बना रहेगा तभी हम जिंदा रह पाएंगे


आज विश्व पर्यावरण दिवस है। वैश्विक स्तर पर मनाए जाने वाले इस पर्यावरण दिवस को अब पूरी गंभीरता और जिम्मेदारी से जनांदोलन बनाने की जरूरत है, जो हमारे हर कदम पर दिखाई दे। हमारी जीवनचर्या का हिस्सा बने। यह एक दिन का काम नहीं है। बिना किसी औपचारिकता और दिखावे के इस काम को हम सभी करें। जैसा हमारे पूर्वजों ने किया। हम सबको यह अच्छी तरह याद होगा कि हम जब कभी पानी को अन्यथा फेंक देते थे या खराब कर देते थे तो हमारे बुजुर्ग तुरंत डांट देते थे और कहते थे कि पानी खराब करोगे तो ऊपर जाकर इसका हिसाब देना होगा। पेड़ों को काटने नहीं देते थे। नदी, पोखर-तालाबों को गंदा नहीं करने देते थे। जगलों को हर हाल में बचाने की कोशिश करते थे। यह डर था हमारे बुजुर्गों में। वे प्रकृति से मिली हर चीज की महत्ता और उपयोगिता को समझते थे। प्राकृतिक संसाधनों का उनके उसी रूप में रहना और रखना यह उनकी, समाज की चिंता में था। हमने आज इन सबका क्या हाल कर दिया? हम प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने से बाज नहीं आ रहे। जगलों को नष्ट कर हमने जानवरों की बस्ती उजाड़ दी। जिसके कारण जंगली जानवर हमारे गांवों में, घरों में आने शुरु हो गए। कई पशु-पक्षियों के प्रजनन करने की सुरक्षित जगह तक को नहीं छोड़ा हमने। जिससे पशु-पक्षियों की सैंकड़ों प्रजातियां ही खत्म हो गई और कई खत्म होने के कगार पर आ गई हैं। पर्यावरण क्या है? जल, जंगल, जमीन, वायु, प्रकृति। यह सब मिलकर ही तो पर्यावरण का निर्माण करते हैं। जिस पर हमारा, सबका जीवन निर्भर है। पशु, पक्षी, जानवर सबका। सोचिए, अगर यही नहीं रहेगा तो हमारा क्या होगा, हम कैसे जिंदा रहेंगे? विकास और भौतिक सुख-सुविधाओं के नाम पर हमने प्रकृति और पर्यावरण का क्या हाल कर दिया, यह न बताने की जरूरत है, न कहने की। बड़ी अजीब बात है जिस पर्यावरण और प्रकृति को हमने नष्ट किया है और करते जा रहे हैं, उसे बचाने की स्कूलों में हमारे बच्चों को हाथों में तख्ती और बैनर लेकर जागरूकता रैली निकालनी पड़ रही है। कैसा दोहरा मापदंड है हमारा। कभी सोचा है हमारे बच्चे हमारी ऐसी करतूतों पर क्या सोचते होंगे? कभी उनसे बैठकर बात कीजिए। जब आपके बच्चे आपसे यह पूछेंगे कि हमारे कल के लिए यही और ऐसा पर्यावरण छोडक़र जाएंगे, जिसमें हवा-पानी तक शुद्ध नहीं है। माननीय उच्चतम न्यायालय ने तो दिल्ली को गैस चैंबर तक बता दिया है। बढ़ते वायु प्रदुषण को देखते हुए स्कूलों की छुट्टी करनी पड़ रही है। घर से बाहर हमें मास्क लगाकर निकलना पड़ रहा है। पानी पीने योग्य नहीं रहा तो हवा सांस लेने के लिए। पेड़ लगाने के नाम पर हम जमीन कब्जा रहे हैं। गुरूग्राम में नए पेड़-पौधे लगाने के लिए जगह ही नहीं बची। पानी को कभी न खत्म होने वाली चीज मानकर हमने धरती का पेट ही खाली कर दिया। पानी आज न जमीन के ऊपर बचा है और न नीचे और जो है वह प्रदूषित। इस काम को करते हुए हमने हमारी जीवन दायनी नदियों तक को नहीं छोड़ा। उनमें कूड़ा-कचरा प्रवाहित कर उन्हें जाम कर दिया। उन्हें नालों में बदल दिया। जहरीला बना दिया। खत्म कर दिया। इन सबको लेकर हमारी सरकारों के जितने भी कार्यक्रम बने, नीतियां बनीं, वह अपने लक्ष्य तक पहुंच ही नहीं पाई, क्यों? क्योंकि उनमें नीयत और इच्छाशक्ति की कमी थी। माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने इस सबको स्वयं के स्तर देखा है और समझा है तभी उन्हें बीते रविवार को अपनी मन की बात में देश के सभी लोगों से खराब और खत्म हो रहे पर्यावरण को बचाने में अपना योगदान करने की अपील करनी पड़ी है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण को बचाने और पेड़ लगाने के साथ-साथ हमें स्वच्छता का अभियान भी चलाना होगा, क्योंकि स्वच्छ वातावरण ही स्वच्छ पर्यावरण का निर्माण करता है। इसलिए पेड़ लगाने की जिम्मेदारी समझें। पेड़ लगाने के लिए जगह छोड़ें। आप सब इस पर्यावरण दिवस को एक उत्सव के रूप में मनाएं। हर दिन। इस उत्सव में सबको शामिल करें।


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