हरियाणा में कन्या भ्रूण की आए दिन हो रही हत्या को रोकने और उसे दुनिया में आने देने के लिए सरकार के "बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ" कार्य्रकम के माध्यम से लोगों से कन्या भ्रूण हत्या न करने और जन्म देकर पढ़ाने, पैरों पर खड़ा करने की अपील प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी से लेकर मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल जी तक सब कर रहे हैं। सरकार का यह कार्यक्रम निश्चित रूप से प्रशंसीय है। पहले भी इस तरह के कई कार्यक्रम हुए हैं और हो रहे है, लेकिन बात इतने भर से होने वाली नहीं हैं। हमें समझना होगा कि ऐसी योजनाएं और कार्यक्रम अपने लक्ष्य को तभी प्राप्त कर सकते हैं जब समाज इसमें अपनी प्रभावी भूमिका का निर्वाह करेगा।
यह कितने शर्म और दुःख की बात है कि बच्चियों के रूप में देश की आधी आबादी को मां के गर्भ में खत्म कर देने की घृणित और घिनौनी कार्रवाई हमारे घरों में आज भी जारी है और हमें इसके लिए रत्ती भर भी किसी प्रकार का अपराधबोध तक नहीं होता बल्कि ऐसा करने की देखा-देखी की एक होड़ समाज के खासकर मध्यम वर्ग के परिवारों में ज्यादा दिखाई दे रही है। अचरज देखिये की जिस डॉक्टर को हमने भगवान् का दर्ज दे रखा है वही, इस अपराध में बराबर का सहभागी बना हुआ है। जब हालात यह हैं तो सुधार की उम्मीद किससे और कैसे की जाए ? क्या हर समस्या का समाधान सरकार ही है ? हद देखिये कि जो काम समाज को करना चाहिए उसे सरकार को करना पड़ रहा है।
नहीं। सरकार इस समस्या का समाधान नहीं है। समस्या का समाधान खोजने से पहले समस्या को जानना जरुरी है। आखिर हम लोग आधी आबादी को बच्चियों के रूप में मां के गर्भ में ही खत्म कर देने पर आमादा क्यों हो रहे है या हो गए है ? इसका संबंध किससे है ? क्या किसी ने सोचने और समझने की कोशिश की है, और अगर की भी है तो उसने अब तक क्या किया ? दरअसल, जहाँ तक बात समझ में आती है इसका संबंध हमारी गरीबी से है, बेरोज़गारी से है, दहेज़ जैसी जानलेवा बीमारी से है, महंगी हो रही शिक्षा से है, सुरक्षा से है। जिसकी परिणीति शायद बच्चियों को मां के गर्भ में ही मार देने के रूप में देखने को मिली है, लेकिन यह समस्या का समाधान कतैई नहीं है और न हो सकता है, न इसका समर्थन किया जा सकता है, न जायज़ ठहराया जा सकता है।
चूँकि लड़कियों को हम शुरू से ही पराया धन मानते आ रहे हैं जिसके कारण भी उसे इस खूबसूरत दुनिया में आने ही नहीं देने की सोच हमने बना ली। सोच इसलिए कि अगर वह इस दुनिया में आएगी भी तो उसके स्वास्थय की, शिक्षा की, सुरक्षा की और एक अच्छा वर ढूंढने की जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी। हमने इसे बेवजह की परेशानी मान ली और इससे छुटकारा पाने की सबसे किफायती तरकीब (उसे पेट में ही खत्म करदो) ढूंढ ली। जिसके चलते प्रदेश में हर रोज़ कहीं न कहीं बच्चियों को मां के गर्भ में ही खत्म कर देने की ख़बरें देखने, सुनने और पढ़ने को मिल रही हैं। पता लगने पर सरकार ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त से सख्त कारवाई अम्ल में ला रही हैं। जब यह खबर और सच्चाई हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को पता चली तो हरियाणा में "बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ" शीर्षक से हुई रैली में लोगों से उन्हें बेटियां बचाने की भीख मांगनी पड़ी, जो हम सब के लिए शर्म की बात है।
ऐसे में सवाल उठता है कि जो काम समाज को करना चाहिए, वह सरकार को क्यों करना पड़ रहा है, जबकि यह जिम्मेदारी समाज की है। समाज को समझना कि आधी आबादी को साथ लिए बगैर न कोई समाज, न देश, न प्रदेश आगे बढ़ सकता है। न उन्नति कर सकता है और न लंबे समय तक जिंदा रह सकता है। किसी भी क्षेत्र में। लेकिन समाज भी क्या करे ? वह अब तक न गरीबी से बाहर आ पाया है, न अशिक्षा से, न असमानता से। आखिर क्या वजह है कि देश में सरकारें तो बदलती रही लेकिन समाज नहीं बदला, न सोच बदली, न व्यवस्था बदली ? जो हमारी ऐसी और अन्य सभी बीमारियों की जड़ है।
सवाल उठता है क्या हम इस स्थिति को यूं ही बना रहने दे या बेटियों को इस खूबसूरत दुनिया में लाने से पहले यह देखें कि हमारी सरकारें उनके लिए, उनके जीवनयापन के लिए क्या और कितना काम कर रही है ? योजनाएं ला रही है ? क्या बेटियों के प्रति हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं ? समाज में पेरेंट्स अपनी बच्चियों को क्या जवाब देंगे, जब बच्चियां बड़ी होकर उनसे सवाल करेंगी कि सरकार की योजनाओं की ध्यान में रखकर ही आपने हमें जन्म दिया ? क्या पेरेंट्स बच्चियों के ऐसे सवालों का जवाब दे पाएंगे ?
यह सही है कि पेरेंट्स की आज सबसे बड़ी चिंता बच्चियों की सुरक्षा को लेकर है, जिसमें सरकार अपना काम प्रभावी तरीके से कर रही है। लेकिन यहीं यह सवाल भी उठता है कि बच्चियों से ही घर-परिवार की मान-मर्यादा क्यों ? आबरू क्यों ? लड़कों से क्यों नहीं ? अच्छी बात यह हो रही है कि समाज में अब यह सवाल उठने लगा है, भले ही सवाल उठाने वाले आज गिनती में हैं, लेकिन कल यही गिनती असंख्य होगी। तब शायद समाज की आँखें खुले। ऐसे में हमारी बच्चियां मां की कोख में ही न मारी जाएँ और उन्हें इस खूबसूरत दुनिया में आने दिया जाए, जिससे समाज में पूरी तरह बिगड़ चुके सेक्स रेशो को सुधार कर सही धरातल पर लाया जा सकें। इसके लिए हमें सबसे पहले गरीबी पर फोकस करना होगा, बेरोज़गारी पर फोकस करना होगा। समाज में अब तक बनी आ रही लड़के-लड़की को लेकर हर प्रकार की असमानता और भेदभाव को दूर करना होगा। साथ ही, समाज में हो रहे और होने वाले प्रेम विवाह और अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा देते हुए मान्यता देनी होगी। हर व्यक्ति और परिवार के लिए रोज़गार की व्यवस्था करनी होगी। करेंगे ना यह ?
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