प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के देश में नोटबंदी
के फैंसले के बाद बैंकों के बाहर पैसे निकलवाने के लिए घंटो कतार में खड़े लोगों की
अधीरता, बेसब्री को विपक्ष के लोग जिस प्रकार हवा दे रहे हैं, उसे लोगों को ही समझने की आज सबसे अधिक जरुरत है। जरुरत इसलिए कि उनकी यह स्थिति
क्योंकर बनी? कौन है इसका जिम्मेदार? समय आ गया है ऐसे लोगों को, राजनैतिक दलों को, सरकारों को जानने का, समझने का, पहचानने का। जिन्होंने प्रधानमंत्री के एक फैंसले से पूरे भारत की अधीरता, बेसब्री और तात्कालिकता को सामने ला दिया। उजागर कर दिया। यह देश के लोगों की कमजोरी
है। जिसे देश के लोगों को ही समझने की सबसे अधिक जरुरत है। आखिर ऐसी व्यवस्था कैसे
विकसित हो गई, जिसमें बहुत से लोगों की जाने
चली जाने की बात कही जा रही है। निश्चित रूप से यह सोचने, समझने, जानने का समय है कि कैसे एक
राजनैतिक दल कांग्रेस जिसने देश पर छह दशक तक राज कर देश में जमाखोरी, कालाबाजारी, भ्रष्टाचार कर कालाधन जमा
करने की प्रवृति को बढ़ावा देते हुए अपने काम से, व्यवहार से, नीतियों से, कार्यक्रमों से देश के लोगों को भ्रष्ट बना दिया। रिश्वतखोर बना दिया। जमाखोर बना
दिया। कालाबाजारी करने वाला बना दिया। उससे लोगों चरित्र, मानसिकता, स्वभाव और काम करने व फैंसला
लेने तक को प्रभावित कर दिया। कोई भी काम ईमानदारी से करना जैसे काम न होने की गारंटी
बन गया। हम बेईमान और धूर्त होते चले गए। हर काम में शार्टकट अपनाना हमारे लिए जरुरी
हो गया और इस सब में हम इतना आगे बढ़ गए कि हमें यह पता ही नहीं चला कि हम अंदर से
कितने कमजोर हो गए। खासकर मानसिक स्तर पर। विश्व की सबसे बड़ी आबादी वाले देश को इतना
कमजोर होना चाहिए? वह देश जो आज वैश्विक स्तर
के हर मंच पर मजबूती से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है। अपने काम से। व्यवहार से। नीतियों
से। कार्यक्रमो से। फैंसलों से। जिससे चहुंओर हमारी सराहना हो रही है। फिर हमारा पड़ोसी
मुल्क चीन जहां बूढ़ा होता जा रहा है वहीं भारत जवान हो रहा है। देश के लिए यह स्थिति
आगामी 30-35 वर्षों तक बनी रहेगी, जो हमारे लिए खुशी की बात
है। फिर हम तेजी से काम करते हुए सबसे अधिक विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में आ खड़े
हुए हैं। दुनिया का हर देश आज हमारे साथ कदम से कदम मिलाकर चलना चाहता है। काम करना
चाहता है। जब स्थिति यह है तो हम क्यों भ्रष्ट होने का धब्बा हमारे माथे पर लगाएं।
कालाबाजारी करें। रिश्वतखोर बनें? क्यों? क्या हम हमारी युवा पीढ़ी को ऐसा बनाना चाहते हैं? ऐसा भारत देश देना चाहते हैं? जबकि युवा पीढ़ी किसी भी राष्ट्र
की मेरुदंड होती है। क्या इसे हम कमजोर कर दें? आखिर बीते लोकसभा चुनाव में श्री नरेंद्र मोदी जी को प्रधानमंत्री के रूप में हमने
इसीलिए चुना था न कि उनसे हमने देश से कालाधन समाप्त करने और विदेशों में जमा कालेधन
को देश में लाने का वादा लिया था। ऐसे में वे इस पर निर्णायक फैंसला लेते हैं और स्थिति
को ठीक करने के लिए कुछ दिन की मोहलत मांगते हैं तो फिर दिक्कत कहां है और क्यों है? इसे समझना होगा। क्या हम हमेशा शिकायत ही करते रहेंगे? समाधान की तरफ नहीं बढ़ेंगे? देश के प्रधानमंत्री ने नोटबंदी
कर कालेधन, भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी
के खिलाफ एक कदम आगे बढ़ाया है, जबकि इस सबके खिलाफ 125 करोड़ कदम आगे बढ़ाने की जरुरत है। ऐसे में देश-दुनिया और खासकर उन लोगों को जो
प्रधानमंत्री के इस कदम की आलोचना कर रहे हैं, उनके काम करने और निर्णय लेने के तरीके पर सवाल उठा रहे हैं, उन्हें शांत और धैर्य रखकर यह बता दीजिए कि यह बदलते और बदल गए भारत देश की ताकत
है। जिसके बूते प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी देश हित में, जनहित में एक के बाद एक फैंसले लेते जा रहे हैं। काम करते जा रहे हैं। इसीलिए वे
कहते हैं कि आप चलें या न चलें---देश चल पड़ा है।
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